बुधवार, 9 नवंबर 2011

क्यों है गुर्जर भारत की प्राचीन जाति?

आज से 23 लाख वर्श पहले पुश्कर में भगवान ब्रह्रा जी ने गाय चरा रही गुर्जर बाला गायत्री माता से यज्ञ के समय विवाह रचाया था। इसका वर्णन ब्रह्रा और विश्णु पुराण में स्पश्ट है। इनका उदगम रुस के पास वर्तमान जार्जिया भी बताया जाता है। जिसका फारसी और तुर्की नाम गोर्जिया है। तुर्की और मध्य एषियाएँ तुर्क क्षेत्र मे गुर्जरों की ही उपजाति कूचर है और ईरान से लेकर अफगानिस्तान और पाकिस्तानी एवं भारतीय इलाकों तक गुर्जरों के नाम से जुडे कई स्थल है। पहले दक्षिण राजस्थान के भीनमाल और गुजरात के भरुच में छोटे गुर्जर राज्य उभरे। कालांतर में 7वीं-8वी सदी में पष्चिम भारत में गुर्जर-प्रतिहार सामा्रज्य का उदय हुआ जो भंडारकर के अनुसार गुर्जर षक्ति का चरम था। प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी गुजराती लेखक और इतिहासकार कन्हैयालाल माणिकलाल मुंषी, जो स्वयं गुर्जर थे के अनुसार परिहार,परमार,चैहान और सौलंकी रातपूत गुर्जर-प्रतिहारों के ही वषंज हैं। कहतें हैं कई षासक गुर्जर वंष तो राजपूत कहलाने लगे और उनके पुरोहित एवं आचार्य ब्रह्राण लेकिन इस समुदाय के काफी लोग अफगानिस्ता,पाकिस्तान ,भारतीय पेजाब,जम्मू-कष्मीर हिमाचल,उतराखण्ड,हरियाणा,राजस्थान,गुजरात,महारास्ट्र,दिल्ली और पष्चिमी उतरप्रदेष मध्यप्रदेष में अब भी किसी न किसी रुप में गुर्जर नाम धारण किए हुए हैं और जनजातीय या पषुपालक या षुद्र्र्र हैसियत के हैं। जम्मू-कष्मीर और हिमाचल प्रदेष में मुस्लिम गुर्जर-बकरवालों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्राप्त है और उतराखण्ड में वनगुर्जर पाए जातें। गुजरात में लेवा कुनबी समुदाय का एक हिस्सा मूलतः गुर्जर है। भारत के प्रथम ग्रहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल इसी समुदाय के थे।
पूर्व मध्यकाल में गुर्जरों के नायक राजा भोज बताए जातें हैं। मध्य राजस्थान में भीम के पास आसींद में सवाई भेज का एक विषाल मंदिर पूरे देष के गुर्जरों का तीर्थ है। इस समुदाय के लोंक देवता देवनारायण हैं।जिनके मंदिरों की निषानी रंग-बिरंगी पतकाएँ और दीवारों पर उत्कीर्ण सर्प हैं। परम्परागत रुप में वीर रस का ढेर सारा लोककाव्य जीवित रखा है। बगडावत इनका प्रसिद्ध लोककाव्य है। ऐतिहासिक गुर्जर व्यक्तित्वों में षिवाजी के सेनापति प्रतापराव गुर्जर और उनके नौसेनाध्यक्ष सिधोजी गुर्जर तथा सिख महाराजा रणजीत सिहँ के सेनापति हरिसिहँ नलवा भी प्रसिद्ध रहे है। गुर्जरों भी भाशा गोजरी है जो राजस्थानी,गुजराती के करीब है।यह पष्चिमोत्तर भारत से लेकर पाकिस्तान,अफगानिस्तान तक बोली जाती है हालंकि गुर्जर जिस इलाके मे रहते है।उस इलाके की भाशा, बोली भी जानते हैं।
सन 1857 में अंग्रेजों का विरोध गुर्जरों को महंगा पडा।भीशण दमन के बाद उन्हें ब्रिटिष काले कानून की वजह से जरायमपेषा जनजाति का कलंक माथे पर ढोना पडा। सरकारी नौकारियों में गुर्जरो की नियुक्ति पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी गइ। अंग्रेजो को लगान न देने की कीमत उन्हें अपनी जड और जमीन से बेदखल होकर चुकानी पडी। इसने गुर्जरों को आर्थिक, राजनितिक और सामाजिक मुख्य धारा से अलग-थलग कर दिया। साक्षरता और षिक्षामें वह पिछडते चले गए। जब 1947 में देष आजाद हुआ तक राजनिति में उतर भारत के गुर्जरों की भागीदारी न के बराबर थी। सरदार पटेल गुजरात से थे और उनकी पहचान राष्टरीय नेता की थी। सन 1952 के पहले संसदीय चुनाव में एक भी गुर्जर लोकसभा में चुनकर नहीं आ सका ।जबकि उत्तर प्रदेष में 9 राजस्थान में 13 मध्य प्रदेष में 12 गुजरात में 9जम्मू-कष्मीर में 3 हरियाणा में 2पंजाब में 2 और दिल्ली में ३ महाराष्टर में 2 लोकसभा सीटों पर गुर्जर मतदाताओं की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है। यह आंकडे आउटलुक पत्रिका के सर्वे के हैं।
प्रथम ग्रहमंत्री सरदार पटेल ने 1951 में अंग्रेजों के काले ‘जरायमपेषा कौम कानून‘ को खत्म करके उसमें अधिसूचित गुर्जर,मीणा और अन्य जातियों को गैर-अनुसूचित जनजाति (डीनोटिफाइड ट्राइब)का दर्जा दे दिया और नागरिक बहाल कर दिए समाज के विद्धान बताते हैं कि इन जातियों को सामाजिक ,आर्थिक और षैक्षिक विकास की मुख्य धारा में लाने के लिए सरदार पटेल ने लाकोर कमेटी और अयंकार कमेटी का गठन किया। दोनो समीतियों ने अपनी रिपोर्ट में गैर-अधिसूचित जनजातियों को अनुसूचित जाति/जनजाति की सुविधाएँ देने की सिफारिष की। विद्धान कहते हैं कि सन 1952 मे सरदार पटेल के निधन के बाद से दोनो रिपोर्ट सरकारी रिकार्ड में धूल खा रही है। हालाकि समाज सेवी इस मामले को 1972 में सुप्रीम कोर्ट ले गए जिसके बाद केन्द्रीय समाज कल्याण मंत्रालय ने विभिन्न राज्यों से गुर्जरों की स्थिति पर रिपोर्ट मांगी लेकिन किसी भी राज्य ने रिपोर्ट नहीं भेजी।
गुर्जर विकास संगठन का दावा है कि गुर्जरो की आबादी भारत में करीब 13 करोड और पाकिस्तान में 2 करोड हैं। दौसा से कांग्रेस सासंद सचिन पायलट कहतें हैं आमतौर पर हरियाणा,दिल्ली,और उत्तर प्रदेष के सम्पन्न के गुर्जरो को देखकर लोग देष भर के गुर्जरो को वैसा ही मान लेते हैं लेकिन हकीकत यह है कि राजस्थान,मध्यप्रदेष, जम्मू-कष्मीर,हिमाचल और उत्तराखंड के गुर्जर सामाजिक आर्थिक और षैक्षिक रुप से बेहद पिछडे हैं।‘‘ राजनीति की मुख्य धारा मे गुर्जर कभी संगठित राजनीतिक इकाई के रुप में उस तरह स्थापित नहीं हो पाए जिस तरह कई अन्य जातियाँ हुई। सन 1952 में उत्तर प्रदेष विधानसभा में सिर्फ दो गुर्जर विधायक रामचन्द्र विकल और महंत जगन्नाथदास जीतकर आए। जाटों और यादवों के कई राश्टी्रय नेताओं कीतुलना में गुर्जरो में सिर्फ राजेष पायलट को ही राश्टी्रय स्तर पर मान्यता मिल सकीं। गुर्जरो को राजनीतिक रुप से संगठित करने की पहल चरण सिहँ ने अपनी किसान राजनीति के अजगर‘ फार्मूले में अहीर और जाटो के बाद गुर्जरों को वरीयता देकर दी। चैधरी चरण सिहँ ने रामचन्द्र विकल को उत्तर प्रदेष में मंत्री बनाया और नारायण सिहँ को बनारसी दास सरकार में उप मुख्यमंत्री बनवाया हालाकि विकल बाद तें काग्रेस की ओर से चरण सिहँ के खिलाफ लडे। उत्तर प्रदेष के गुर्जरो की आबादी करीब पाँच फीसदी मानी जाती है जो ज्यादातर राज्य के पष्चिमी जिलो में केन्द्रित है। राजस्थान में 1931 की जनगणना के मुतागिक गुर्जरो की तादाद 11 फीसदी से ज्यादा थी।ये उत्तर-पष्चिमी सीमांत क्षेत्र को छोडकर लगभग पूरे राज्य में फैले हैं और आमतौर पर पिछडे हैं। डंाग और दक्षिणी राजस्थान के गुर्जर आमतौर पर ज्यादा विपन्न हैं। मौजूदा विधानसभा में आठ गुर्जर विधायकों में छह भाजपा में है और एक कालूराम गुर्जर मंत्री मध्य प्रदेष में गुर्जरों की सबसे ज्यादा आबादी वाले क्षेत्र ग्वालियर- चंबल संभाग है। चंबल क्षेत्र में बागी दस्याओं की परंपरा में भी गुर्जर आगे रहे हैं।मोहर सिहँ मलखाल सिहँ निर्भय गुर्जर बाबू गुर्जर जैसे कई नाम गिनाए जा सकते हैं। मालवा और निमाड में भी खासी गुर्जर आबादी है।देष के प्रमुख गुर्जर राजनीतिक नेताओं में हरियाणा के अवतार सिहँ भडाना, उत्तर प्रदेष के समाजवादी नेता रामषरण दास एवं युवा सांसद चैधरी मुनव्वर हसन राजस्थान के सांसद सचिन पायलट,गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल, मध्य प्रदेष के गुर्जर नेता हुकुम सिहँ कराडा,ताराचंद पटेल,दिल्ली केएनसीपी नेता रामवीर सिह विधूडी एवं चैधरी षीषपाल सिहँ विधूडी,महाराश्ट्र के अन्ना के विखे पाटिल आदि हैं। जम्मू-कष्मीर में चैधरी असलम साद,बसीर अहमद एवं षेख अब्दुला की पत्नी बेगम अकबर जहान खुद गुर्जर थीं और राजनीति में बेहद सक्रिय रहीं। उन्हे कष्मार में ‘मादरे मेहरबां के नाम से भी जाना जाता है। कांग्रेस में इंदिरा गांधी ने 70के दषक में गुर्जरो की ताकत पहचानी।उन्होने 1980 के लोकसभा चुनावों में राजेष पायलट को राजस्थान के गुर्जर-जाट बहुल भरतपुर से संसद में भेजकर उन्हें देष की गुर्जर राजनीति की धुरी बना दिया।
पिछडा वर्ग में षामिल होने के बावजूद षिक्षा,प्रषासन और पुंजी जगत में गुर्जरों की हिस्सेदारी नगण्य हैं। मंडल आयोग की सिफारिषें लागू होने के 15 साल बाद सिर्फ तीन गुर्जर भारतीय प्रषासनिक सेवा में आए हैं। जबकि आईपीएस सिर्फ पाँच हैं जो मंडल से पहले बने थे। बैंसला की बेटी गुर्जरों में पहली प्रथम श्रेणी महिला अधिकारी हैं।जो आयकर विभाग में तैनात हैं।सेना में गुर्जरो की भागीदरी ठीक-ठाक है।संपन्न गुर्जरो की श्रेणियों में पहली उनकी है जिनके पूर्वज पूर्व रियासतों से संबद्ध रहे चाहे उदय सिहँकी धायमां पन्ना धाय के समान धायों की संतति के रुप में धाभाई उपाधि धारण करने वाले हों या पुर्व रियासतो के फौजियो और कर्मचारियों के वषंज हों। इनके बाद वे हैं जो अंग्रेजों द्धारा गुर्जरों को जरायम पेषा कौम की सूची में डाले जाने के बाद गैरकानूनी जरीकों से पैसा कमाकर संपन्न हुए। फिर वे गुर्जर हैं जिन्होने दूध-मावा व्यवसाय से खुद को समृद्ध किया। नए संपन्न श्रेणियों की आबादी 20 फीसदी ही है।षेश गुर्जर गरीबी की रेखा के आसपास हैं।वैसे पाकिस्तान में गुर्जरों की हालत अच्छी है। पाकिस्तान में पूर्व राश्ट्रपति फजल इलाही और तेज गेंदबाज शोएब अख्तर जैसी गुर्जर षख्सियतें शिखर पर रहीं है।

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