शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

GURJAR NETA

In the present Lok Sabha 6 MP are Gurjars 1. Sachin Pilot - Ajmer - (Rajasthan)- Union Minister of state for Communication & IT 2. Avtar Singh Bhadana-- Faridabad-(Haryana) 3. Tabassum Hassan -Kairana-(UP) 4. Surendra Singh Nagar- Noida (UP) 5. Sanjay Singh Chauhan- Bijnore(UP) 6. Dinsha Javerbhai Patel -Khera (Gujarat) 7. ramsevak singh gurjar-gwalior (mp) 8.DILIP SINGH JUDEV(BILASPUR) 9.MAHARAJA.RANJIT SINGH JUDEV SAMTHER(JHANSI) The list Gurjar MLA in various states. 1.Jammu & Kashmir -(5)Gujjars constitute more than 20% of the state's population and out of 87 assembly segments, in 12 segments their population is between 35 to 50%. Gujjar candidates were declared elected from five assembly segments in 2008 1. Surankote (Chaudhary Mohammad Aslam)- ex rajya sabha MP 2. Darhal (Zulifkar Chaudhary) 3. Gool-Arnas (Chaudhary Aijaz Ahmed )-State minister 4. Kangan (Mian Altaf Ahmad) 5. Uri (Chaudhary Taj-Mohi-ud-Din) ------------------CABINET minister 6 .BASHIR NAZ-State minister for Gujjar bakarwal board.(nominated) basically from poonch. 2. Punjab -2 (1) Nand Lal Gujjar-- from Balachaur in Nawanshar Distt (Parl. Secretary) (2) Razia Sultana - Congress (I), Maler Kotla, Sangrur District (Wife of IGP, Punjab Mohd. Mustafa) 3.Himachal (0)In the last assembly Rangila Ram Rao was the Minister from Mandi 4. Haryana -7 (The List of newly elected MLA in Haryana (2009) is as follows) 1. Ram Kishan ---------------------Naraingarh-------Ambala 2. Dharam Singh Chokkar--------Samalkha--------Panipat 3. Mahendra Pratap Bhadana---Badkhal-----------Faridabad--Cabinet Minister Haryana Govt. 4. Krishan Pal Bainsla Gurjar-----Tigaon------------Faridabad (BJP state President) 5. Subhash Chaudhary-----------Palwal-------------Palwal 6. Pradeep Chaudhary: Kalka: Panchkula 7. Akram Khan (Chauhan:) BSP: Jagadhri, Yamuna Nagar. (Deputy Speaker of Haryana Assembely) 5. Delhi (7) 1. Ram Singh Netaji -Badarpur 2. Ramesh Bidhuri-Tughlakabad 3. Balram Tanwar-Chattarpur 4. Naseeb Singh Dheda-Vishwas Nagar 5. Anil Chaudhary-- Patparganj 6. Dayaram Chandila-Rajouri Garden 7. Neeraj Basoya-Kasturba Nagar 6. UP (7) 1.MAHARAJA.RANJIT SINGH JUDEV SAMTHER (JHANSI) 2. Manoj Chaudhary-Deoband(Saharanpur)-BSP 3. Hukum Singh-Kairana(Muzaffarnagar)-BJP 4. Madan Bhaiya-Khekra(Baghpat)-LOKDAL 5. Lakhiram Nagar-Kharkhouda Meerut ( Minister)-- brother of Malook Nagar-BSP 6. Satbeer Gurjar-Dadri-Noida -BSP 7. Vedram Bhati-Sikandrabad-Bulandhshahr( Minister)-BSP 8. Mahipal Majra- Nakud(Saharanpur)-BSP 9. MANDLESHWAR SINGH (AGRA), 10. Chaudhary Shankar Singh (JALON), 7. Uttarakhand (1)Kunwar Pranav Singh Champion- Laksar-. Haridwar-- descendent of Raja Landhaura in Haridwar 2. Chaudhary Yashveer Singh- Iqbalpur-Haridwar 8.Rajasthan (7) 1. Mahendra Singh-Nasirabad-(Ajmer) 2. Anita Gurjar-Nagar(Bharatpur) 3. Ram Lal Gurjar-Asind-Bhilwara 3. Rajendra Singh Bidhuri- Begun - Chittorgarh 5. Jitendra Singh--Khetri--Jhunjhunu-- Cabinet minister 6. Ramswaroop Kasana- Kotputli - Jaipur 7. Hem Singh Bhadana- Thanagazi- Alwar 8. bijendar singh supa(bayna), 9. Hansram Singh(karoli), 10.Saligram Singh(dholpur) 9.Madhya Pradesh (3) 1. Adal Singh Kasana-Sumavali (Morena) 2. Dileep Singh Gurjar- Nagda ( Ujjain) 3. Hukum singh Karhana- Shajapur ( Shajapur) in western MP- ex Minister 4. SOBRAN SINGH MAVAI(MORENA), 5.RUSTAM SINGH(MORENA), 6.JODHARAM SINGH GURJAR(vidisha), 7.RAMSEVAK SINGH GURJAR(GWALIOR), 8.KAPTAAN SINGH PATEL(GWALIOR), 9.RAMBARAN SINGH GURJAR(GWALIOR), 10. Maharashtra (2) 1. Girish Dattatrey Mahajan (BJP)- Jamner (Jalgaon) 2. Gulab Rao Raghunath Patil (Shivsena)- Erandol (Dharangaon, Jalgaon) (Update ex MLA fr Erandol) #Mayor 1.seema choudhary,ex-mayor of Panchkula,Haryana 2.Madhu Gujjar,mayor of Meerut,Uttar-pradesh 3.Brahamwati khatana,ex mayor of faridabad 4.sunil Gurjar,Mayor,ambarnath city ,maharashtra

बुधवार, 9 नवंबर 2011

गुर्जर प्रतिहार वंश का प्राचीन इतिहास

गुर्जर- प्रतिहार वंश
यशोवर्मन के पश्चात कुछ समय तक के मथुरा प्रदेश के इतिहास की पुष्ट जानकारी नहीं मिलती । आठवीं शती के अन्त में उत्तर भारत में गुर्जर प्रतीहारों की शक्ति बहुत बढ़ गई थी । गुर्जर लोग पहले राजस्थान में जोधपुर के आस-पास निवास करते थे । इस वजह से उनके कारण से ही लगभग छठी शती के मध्य से राजस्थान का अधिकांश भाग 'गुर्जरन्ना-भूमि' के नाम से जाना था । आज तक यह विवाद का विषय है कि गुर्जर भारत के ही मूल निवासी थे या हूणों आदि की ही भाँति वे कहीं बाहर से भारत आये थे । भारत में सबसे पहले गुर्जर राजा का नाम हरिचंद्र मिलता है, जिसे वेद-शास्त्रों का जानने वाला ब्राह्मण कहा गया है । उसकी दो पत्नियाँ थी- एक ब्राह्मण स्त्री से प्रतीहार ब्राह्मणों की उत्पत्ति और भद्रा नाम की एक क्षत्रिय पत्नी से प्रतीहार-क्षत्रिय वंश हुआ, प्रतीहार-क्षत्रिय वंश के पुत्रों ने शासन का कार्य भार संभाला । गुप्त-साम्राज्य के समाप्त होने के बाद हरिचंद्र ने अपने क्षत्रिय-पुत्रों की मदद से जोधपुर के उत्तर-पूर्व में अपने राज्य को विस्तृत किया । इनका शासन-काल सम्भवतः 550 ई. से 640 ई. तक रहा । उनके बाद प्रतीहार-क्षत्रिय वंश के दस राजाओं ने लगभग दो शताब्दियों तक राजस्थान तथा मालवा के एक बड़े भाग पर शासन किया । इन शासकों ने पश्चिम की ओर से बढ़ते हुए अरब लोगों की शक्ति को रोकने का महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी ।
अरब लोगों के आक्रमण
सातवीं शती में अरबों ने अपनी शक्ति को बहुत संगठित कर लिया था । सीरिया और मिस्त्र पर विजय के बाद अरबों ने उत्तरी अफ्रीका, स्पेन और ईरान पर भी अपना अधिकार कर लिया । आठवीं शती के मध्य तक अरब साम्राज्य पश्चिम में फ्रांस से लेकर पूर्व में अफ़ग़ानिस्तान तक फैल गया था । 712 ई॰ में उन्होंनें सिंध पर हमला किया । सिंध का राजा दाहिर(दाहर) ने बहुत वीरता से युद्ध किया और अनेक बार अरबों को हराया । लेकिन युद्ध में वह मारा गया और सिंध पर अरबों का अधिकार हो गया । इसके बाद अरब पंजाब के मुलतान तक आ गये थे । उन्होंने पश्चिम तथा दक्षिण भारत को भी अधिकार में लेने की बहुत कोशिश की लेकिन प्रतीहारों एवं राष्ट्रकूटों ने उनकी सभी कोशिशों को नाकाम कर दिया । प्रतीहार शासक वत्सराज के पुत्र नागभट ने अरबों को हराकर उनकी बढ़ती हुई शक्ति को बहुत धक्का लगाया ।
कन्नौज के प्रतिहार शासक
नवीं शती के शुरु में कन्नौज पर प्रतिहार शासकों का अधिकार हो गया था । वत्सराज के पुत्र नागभट ने संभवतः 810 ई. में कन्नौज पर विजय प्राप्त कर अपने अधिकार में लिया । उस समय दक्षिण में राष्ट्रकूटों तथा पूर्व में पाल-शासकों बहुत शक्तिशाली थे । कन्नौज पर अधिकार करने के लिए ये दोनों राजवंश लगे हुए थे । पाल-वंश के शासक धर्मपाल (780-815 ई॰) ने बंगाल से लेकर पूर्वी पंजाब तक अपने राज्य को विस्तृत कर लिया और आयुधवंशी राजा चक्रायुध को कन्नौज का शासक बनाया था । नागभट ने धर्मपाल को हराकर चक्रायुध से कनौज का राज्य छीन लिया और सिंध प्रांत से लेकर कलिंग तक के विशाल भूभाग पर नागभट का अधिकार हो गया । मथुरा प्रदेश इस समय से दसवीं शती के अंत तक गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य के अंतर्गत रहा ।
नागभट तथा मिहिरभोज
इसके कुछ समय बाद ही नागभट को एक अधिक शक्तिशाली राष्ट्रकूट राजा गोविंद तृतीय से युद्ध करना पड़ा । नागभट उसका सामना न कर सका और राज्य छोड़ कर भाग गया । गोविंद तृतीय की सेनाएं उत्तर में हिमालय तक पहँच गई किंतु महाराष्ट्र में अराजकता फैल जाने के कारण गोविंद को दक्षिण लौटना पड़ा । नागभट के बाद उसका पुत्र रामभद्र लगभग 833 ई॰ में कन्नौज साम्राज्य का राजा हुआ । उसका बेटा मिहिरभोज (836 -885 ईं0 )बड़ा प्रतापी व शक्तिशाली राजा हुआ । उसके भी पालों और राष्ट्रकूटों के साथ युद्ध चलते रहे । पहले तो भोज को कई असफलताओं मिली, परंतु बाद में उसने भारत की दोनों प्रमुख शक्तियों को हराया । उसके अधिकार में पंजाब, उत्तर प्रदेश तथा मालवा भी आ गये । इतने विशाल साम्राज्य को व्यवस्थित करने का श्रेय मिहिरभोज को ही जाता है ।
महेन्द्रपाल (लगभग 885 - 910 ई॰)
मिहिरभोज का पुत्र महेन्द्रपाल अपने पिता के ही समान था । उसने अपने शासन में उत्तरी बंगाल को भी प्रतीहार साम्राज्य में मिला लिया था । हिमालय से लेकर विंध्याचल तक और बंगाल की खाड़ी से लेकर अरब सागर तक प्रतिहार साम्राज्य का शासन हो गया था । महेन्द्रपाल के शासन काल के कई लेख कठियावाड़ से लेकर बंगाल तक में प्राप्त हुए है । इन लेखों में महेन्द्रपाल की अनेक उपाधियाँ मिलती हैं । 'महेन्द्रपुत्र', 'निर्भयराज', 'निर्यभनरेन्द्र' आदि उपाधियों से महेन्द्रपाल को विभूषित किया गया था ।
महीपाल (912 - 944)
महेन्द्रपाल के दूसरे बेटे का नाम महीपाल था और वह अपने बड़े भाई भोज द्वितीय के बाद शासन का अधिकारी हुआ । संस्कृत साहित्य के विद्वान राजशेखर इसी के शासन काल में हुए, जिन्होंने महीपाल को 'आर्यावर्त का महाराजाधिराज' वर्णित किया है और उसकी अनेक विजयों का वर्णन किया है । अल-मसूदी नामक मुस्लिम यात्री बग़दाद से लगभग 915 ई॰ में भारत आया । प्रतीहार साम्राज्य का वर्णन करते हुए इस यात्री ने लिखा है, कि उसकी दक्षिण सीमा राष्ट्रकूट राज्य से मिलती थी और सिंध का एक भाग तथा पंजाब उसमें सम्मिलित थे । प्रतिहार सम्राट के पास घोड़े और ऊँट बड़ी संख्या में थे । राज्य के चारों कोनों में सात लाख से लेकर नौ लाख तक फ़ौज रहती थी । उत्तर में मुसलमानों की शक्ति को तथा दक्षिण में राष्ट्रकूट शक्ति को बढ़ने से रोकने के लिए इस सेना को रखा गया था ।*
राष्ट्रकूट-आक्रमण
916 ई॰ के लगभग दक्षिण से राष्ट्रकूटों ने पुन: एक बड़ा आक्रमण किया । इस समय राष्ट्रकूट- शासक इन्द्र तृतीय का शासन था । उसने एक बड़ी फ़ौज लेकर उत्तर की ओर चढ़ाई की और उसकी सेना ने बहुत नगरों को बर्बाद किया, जिसमें कन्नौज प्रमुख था । इन्द्र ने महीपाल को हराने के बाद प्रयाग तक उसका पीछा किया । किन्तु इन्द्र को उसी समय दक्षिण लौटना पड़ा । इन्द्र के वापस जाने पर महीपाल ने फिर से अपने राज्य को संगठित किया किन्तु राष्ट्रकूटों के हमले के बाद प्रतिहार राज्य संम्भल नही पाया और उसका गौरव फिर से लौट कर नहीं आ सका । लगभग 940 ई॰ में राष्ट्रकूटों ने उत्तर में बढ़ कर प्रतिहार साम्राज्य का एक बड़ा भाग अपने राज्य में मिला लिया । इस प्रकार प्रतिहार शासकों का पतन हो गया ।
परवर्ती प्रतीहार शासक (लगभग 944 - 1035 ई॰)
महीपाल के बाद क्रमशः महेंन्द्रपाल, देवपाल, विनायकपाल, विजयपाल, राज्यपाल, त्रिलोचनपाल तथा यशपाल नामक प्रतिहार शासकों ने राज्य किया । इनके समय में कई प्रदेश स्वतंत्र हो गये । महाकोशल में कलचुरि, बुदेंलखंड में चंदेल, मालवा में परमार, सौराष्ट्र में चालुक्य, पूर्वी राजस्थान में चाहभान, मेवाड़ में गुहिल तथा हरियाणा में तोमर आदि अनेक राजवंशों ने उत्तर भारत में स्वयं को स्वतन्त्र घोषित कर दिया । इन सभी राजाओं में कुछ समय तक शासन के लिए खींचतान होती रही।
प्रतीहार-शासन में मथुरा की दशा
नवीं शती से लेकर दसवीं शतीं के अंत तक लगभग 200 वर्षों तक मथुरा प्रदेश गुर्जर प्रतीहार-शासन में रहा । इस वंश में मिहिरभोज, महेंन्द्रपाल तथा महीपाल बड़े प्रतापी शासक हुए । उनके समय में लगभग पूरा उत्तर भारत एक ही शासन के अन्तर्गत हो गया था । अधिकतर प्रतीहारी शासक वैष्णव या शैव मत को मानते थे । उस समय के लेखों में इन राजाओं को विष्णु, शिव तथा भगवती का भक्त बताया गया है । नागभट द्वितीय, रामभद्र तथा महीपाल सूर्य-भक्त थे । प्रतिहारों के शासन-काल में मथुरा में हिंदू पौराणिक धर्म की बहुत उन्नति हुई । मथुरा में उपलब्ध तत्कालीन कलाकृतियों से इसकी पुष्टि होती है । नवी शती के प्रारम्भ का एक लेख हाल ही में श्रीकृष्ण जन्मस्थान से मिला है । इससे राष्ट्रकूटों के उत्तर भारत आने तथा जन्म-स्थान पर धार्मिक कार्य करने का ज्ञान होता है । संभवत: राष्ट्रकूटों ने अपने हमलों में धार्मिक केन्द्र मथुरा को कोई हानि नहीं पहुँचाई । नवीं और दसवीं शती में कई बार भारत की प्रमुख शक्तियों में प्रभुत्व के लिए संघर्ष हुए । इन सभी का मुख्य उद्देश्य भारत की राजधानी कन्नौज को जीतना था । मथुरा को इन युद्धों से कोई विशेष हानि हुई हो इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता ।
उत्पत्त्ति
गुर्जर अभिलेखो के हिसाब से ये सुर्यवन्शी या रघुवन्शी है।प्राचीन महाकवि राजसेखर ने गुर्जरो को रघुकुल-तिलक तथा रघुग्रामिनी कहा है। 7 वी से 10 वी शतब्दी के गुर्जर शिलालेखो पर सुर्यदेव की कलाकर्तीया भी इनके सुर्यवन्शी होने की पुष्ति करती है। राजस्थान् मै आज भी गुर्जरो को सम्मान से मिहिर बोलते है, जिसका अर्थ सुर्य होता है।
कुछ इतिहासकरो के अनुसार गुर्जर मध्य एशिया के कॉकेशस क्षेत्र ( अभी के आर्मेनिया और जॉर्जिया) से आए आर्य योद्धा थे।कुछ जानकार इन्हे विदेशी भी बताते है क्योन्कि गुर्जरो का नाम एक अभिलेख मे हूणों के साथ मिलता है, परन्तु इसका कोई एतिहासिक प्रमाण नही है।
सन्सक्रित के विद्वानो के अनुसार गुर्जर सन्सक्रित शब्द है, जिसका अर्थ शत्रु विनाशक होता है।प्राचीन महाकवि राजसेखर ने गुर्जर नरेश महिपाल को अपने महाकाव्य मे दहाडता गुर्जर कह कर सम्बोदित किया है।
कुछ इतिहासकर कुषाणो को गुर्जर बताते है तथा कनिष्क के रबाटक शिलालेख पर अन्कित 'गुसुर' को गुर्जर का ही एक रूप बताते है।उनका मानना है कि गुशुर या गुर्जर लोग विजेता के रूप मे भारत मे आये क्योन्कि गुशुर का अर्थ उच्च कुलिन होता है।
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इतिहास के अनुसार 5वी शदी मे भीनमाल गुर्जर सम्राज्य की राजधानी थी तथा इसकी स्थापना गुर्जरो ने की थी।भरुच का सम्राज्य भी गुर्जरो के अधीन था|चीनी यात्री ह्वेन्सान्ग अपने लेखो मे गुर्जर सम्राज्य का उल्लेख करता है तथा इसे kiu-che-lo बोलता है।
छठी से 12 वीं सदी में गुर्जर कई जगह सत्ता में थे। गुर्जर-प्रतिहार वंश की सत्ता कन्नौज से लेकर बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात तक फैली थी।मिहिरभोज को गुर्जर-प्रतिहार वंश का बड़ा शासक माना जाता है और इनकी लड़ाई बेन्गाल् के पाल वंश और दक्शिन भारत के राष्ट्रकूट शासकों से होती रहती थी।12वीं सदी के बाद प्रतिहार वंश का पतन होना शुरू हुआ और ये कई हिस्सों में बँट गए।अरब आक्रान्तो ने गुर्जरो की शक्ति तथा प्रसाशन की अपने अभिलेखो मे भुरि-भुरि प्रशन्शा की है।
इतिहासकार बताते है कि मुगल काल से पहले तक लगभग पुरा राजस्थान तथा गुजरात, गुर्जरत्रा (गुर्जरो से रक्षित देश) या गुर्जर-भुमि के नाम से जाना जाता था।अरब लेखको के अनुसार गुर्जर उन्के सबसे भयन्कर शत्रु थे तथा उन्होने ये भी कहा है की अगर गुर्जर नही होते तो वो भारत पे 12 वी शदी से पहले ही अधिकार कर लेते।
18 वी शदी म भी गुर्जरो के कुछ छोटे छोटे राज्य थे।दादरी के गुर्जर राजा, दरगाही सिन्ह के अधीन 133 ग्राम थे।मेरठ का राजा गुर्जर नैन सिन्ह था तथा उसने परिक्शित गढ का पुन्रनिर्माण करवाया था। भारत गजीटेयर के अनुसार 1857 की क्रान्ति मे, गुर्जर तथा मुसलमान् रजपुत, ब्रिटिश के बहुत बुरे दुश्मन साबित हुए।गुर्जरो का 1857 की क्रान्ति मे भी अहम योगदान रहा है।कोटवाल धानसिन्ह गुर्जर 1857 की क्रान्ति का शहीद था
आधुनिक स्तिथि
प्राचीन काल में युद्ध कला में निपुण रहे गुर्जर मुख्य रूप से खेती और पशुपालन के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं।गुर्जर अच्छे योद्धा माने जाते थे और इसीलिए भारतीय सेना में अभी भी इनकी अच्छी ख़ासी संख्या है। ये गुर्जर राजस्थान, हरियानण, मध्यप्रदेश्, उत्तरप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर जैसे राज्यों में फैले हुए हैं। राजस्थान में सारे गुर्जर हिंदू हैं।सामान्यत: गुर्जर हिन्दु , सिख, मुस्लिम आदि सभी धर्मो मे देखे जा सकते हैं।मुस्लिम तथा सिख गुर्जर, हिन्दु गुर्जरो से ही परिवर्तित हुए थे।पाकिस्तान में गुजरावालां, फैसलाबाद और लाहौर के आसपास इनकी अच्छी ख़ासी संख्या है।

क्यों है गुर्जर भारत की प्राचीन जाति?

आज से 23 लाख वर्श पहले पुश्कर में भगवान ब्रह्रा जी ने गाय चरा रही गुर्जर बाला गायत्री माता से यज्ञ के समय विवाह रचाया था। इसका वर्णन ब्रह्रा और विश्णु पुराण में स्पश्ट है। इनका उदगम रुस के पास वर्तमान जार्जिया भी बताया जाता है। जिसका फारसी और तुर्की नाम गोर्जिया है। तुर्की और मध्य एषियाएँ तुर्क क्षेत्र मे गुर्जरों की ही उपजाति कूचर है और ईरान से लेकर अफगानिस्तान और पाकिस्तानी एवं भारतीय इलाकों तक गुर्जरों के नाम से जुडे कई स्थल है। पहले दक्षिण राजस्थान के भीनमाल और गुजरात के भरुच में छोटे गुर्जर राज्य उभरे। कालांतर में 7वीं-8वी सदी में पष्चिम भारत में गुर्जर-प्रतिहार सामा्रज्य का उदय हुआ जो भंडारकर के अनुसार गुर्जर षक्ति का चरम था। प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी गुजराती लेखक और इतिहासकार कन्हैयालाल माणिकलाल मुंषी, जो स्वयं गुर्जर थे के अनुसार परिहार,परमार,चैहान और सौलंकी रातपूत गुर्जर-प्रतिहारों के ही वषंज हैं। कहतें हैं कई षासक गुर्जर वंष तो राजपूत कहलाने लगे और उनके पुरोहित एवं आचार्य ब्रह्राण लेकिन इस समुदाय के काफी लोग अफगानिस्ता,पाकिस्तान ,भारतीय पेजाब,जम्मू-कष्मीर हिमाचल,उतराखण्ड,हरियाणा,राजस्थान,गुजरात,महारास्ट्र,दिल्ली और पष्चिमी उतरप्रदेष मध्यप्रदेष में अब भी किसी न किसी रुप में गुर्जर नाम धारण किए हुए हैं और जनजातीय या पषुपालक या षुद्र्र्र हैसियत के हैं। जम्मू-कष्मीर और हिमाचल प्रदेष में मुस्लिम गुर्जर-बकरवालों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्राप्त है और उतराखण्ड में वनगुर्जर पाए जातें। गुजरात में लेवा कुनबी समुदाय का एक हिस्सा मूलतः गुर्जर है। भारत के प्रथम ग्रहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल इसी समुदाय के थे।
पूर्व मध्यकाल में गुर्जरों के नायक राजा भोज बताए जातें हैं। मध्य राजस्थान में भीम के पास आसींद में सवाई भेज का एक विषाल मंदिर पूरे देष के गुर्जरों का तीर्थ है। इस समुदाय के लोंक देवता देवनारायण हैं।जिनके मंदिरों की निषानी रंग-बिरंगी पतकाएँ और दीवारों पर उत्कीर्ण सर्प हैं। परम्परागत रुप में वीर रस का ढेर सारा लोककाव्य जीवित रखा है। बगडावत इनका प्रसिद्ध लोककाव्य है। ऐतिहासिक गुर्जर व्यक्तित्वों में षिवाजी के सेनापति प्रतापराव गुर्जर और उनके नौसेनाध्यक्ष सिधोजी गुर्जर तथा सिख महाराजा रणजीत सिहँ के सेनापति हरिसिहँ नलवा भी प्रसिद्ध रहे है। गुर्जरों भी भाशा गोजरी है जो राजस्थानी,गुजराती के करीब है।यह पष्चिमोत्तर भारत से लेकर पाकिस्तान,अफगानिस्तान तक बोली जाती है हालंकि गुर्जर जिस इलाके मे रहते है।उस इलाके की भाशा, बोली भी जानते हैं।
सन 1857 में अंग्रेजों का विरोध गुर्जरों को महंगा पडा।भीशण दमन के बाद उन्हें ब्रिटिष काले कानून की वजह से जरायमपेषा जनजाति का कलंक माथे पर ढोना पडा। सरकारी नौकारियों में गुर्जरो की नियुक्ति पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी गइ। अंग्रेजो को लगान न देने की कीमत उन्हें अपनी जड और जमीन से बेदखल होकर चुकानी पडी। इसने गुर्जरों को आर्थिक, राजनितिक और सामाजिक मुख्य धारा से अलग-थलग कर दिया। साक्षरता और षिक्षामें वह पिछडते चले गए। जब 1947 में देष आजाद हुआ तक राजनिति में उतर भारत के गुर्जरों की भागीदारी न के बराबर थी। सरदार पटेल गुजरात से थे और उनकी पहचान राष्टरीय नेता की थी। सन 1952 के पहले संसदीय चुनाव में एक भी गुर्जर लोकसभा में चुनकर नहीं आ सका ।जबकि उत्तर प्रदेष में 9 राजस्थान में 13 मध्य प्रदेष में 12 गुजरात में 9जम्मू-कष्मीर में 3 हरियाणा में 2पंजाब में 2 और दिल्ली में ३ महाराष्टर में 2 लोकसभा सीटों पर गुर्जर मतदाताओं की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है। यह आंकडे आउटलुक पत्रिका के सर्वे के हैं।
प्रथम ग्रहमंत्री सरदार पटेल ने 1951 में अंग्रेजों के काले ‘जरायमपेषा कौम कानून‘ को खत्म करके उसमें अधिसूचित गुर्जर,मीणा और अन्य जातियों को गैर-अनुसूचित जनजाति (डीनोटिफाइड ट्राइब)का दर्जा दे दिया और नागरिक बहाल कर दिए समाज के विद्धान बताते हैं कि इन जातियों को सामाजिक ,आर्थिक और षैक्षिक विकास की मुख्य धारा में लाने के लिए सरदार पटेल ने लाकोर कमेटी और अयंकार कमेटी का गठन किया। दोनो समीतियों ने अपनी रिपोर्ट में गैर-अधिसूचित जनजातियों को अनुसूचित जाति/जनजाति की सुविधाएँ देने की सिफारिष की। विद्धान कहते हैं कि सन 1952 मे सरदार पटेल के निधन के बाद से दोनो रिपोर्ट सरकारी रिकार्ड में धूल खा रही है। हालाकि समाज सेवी इस मामले को 1972 में सुप्रीम कोर्ट ले गए जिसके बाद केन्द्रीय समाज कल्याण मंत्रालय ने विभिन्न राज्यों से गुर्जरों की स्थिति पर रिपोर्ट मांगी लेकिन किसी भी राज्य ने रिपोर्ट नहीं भेजी।
गुर्जर विकास संगठन का दावा है कि गुर्जरो की आबादी भारत में करीब 13 करोड और पाकिस्तान में 2 करोड हैं। दौसा से कांग्रेस सासंद सचिन पायलट कहतें हैं आमतौर पर हरियाणा,दिल्ली,और उत्तर प्रदेष के सम्पन्न के गुर्जरो को देखकर लोग देष भर के गुर्जरो को वैसा ही मान लेते हैं लेकिन हकीकत यह है कि राजस्थान,मध्यप्रदेष, जम्मू-कष्मीर,हिमाचल और उत्तराखंड के गुर्जर सामाजिक आर्थिक और षैक्षिक रुप से बेहद पिछडे हैं।‘‘ राजनीति की मुख्य धारा मे गुर्जर कभी संगठित राजनीतिक इकाई के रुप में उस तरह स्थापित नहीं हो पाए जिस तरह कई अन्य जातियाँ हुई। सन 1952 में उत्तर प्रदेष विधानसभा में सिर्फ दो गुर्जर विधायक रामचन्द्र विकल और महंत जगन्नाथदास जीतकर आए। जाटों और यादवों के कई राश्टी्रय नेताओं कीतुलना में गुर्जरो में सिर्फ राजेष पायलट को ही राश्टी्रय स्तर पर मान्यता मिल सकीं। गुर्जरो को राजनीतिक रुप से संगठित करने की पहल चरण सिहँ ने अपनी किसान राजनीति के अजगर‘ फार्मूले में अहीर और जाटो के बाद गुर्जरों को वरीयता देकर दी। चैधरी चरण सिहँ ने रामचन्द्र विकल को उत्तर प्रदेष में मंत्री बनाया और नारायण सिहँ को बनारसी दास सरकार में उप मुख्यमंत्री बनवाया हालाकि विकल बाद तें काग्रेस की ओर से चरण सिहँ के खिलाफ लडे। उत्तर प्रदेष के गुर्जरो की आबादी करीब पाँच फीसदी मानी जाती है जो ज्यादातर राज्य के पष्चिमी जिलो में केन्द्रित है। राजस्थान में 1931 की जनगणना के मुतागिक गुर्जरो की तादाद 11 फीसदी से ज्यादा थी।ये उत्तर-पष्चिमी सीमांत क्षेत्र को छोडकर लगभग पूरे राज्य में फैले हैं और आमतौर पर पिछडे हैं। डंाग और दक्षिणी राजस्थान के गुर्जर आमतौर पर ज्यादा विपन्न हैं। मौजूदा विधानसभा में आठ गुर्जर विधायकों में छह भाजपा में है और एक कालूराम गुर्जर मंत्री मध्य प्रदेष में गुर्जरों की सबसे ज्यादा आबादी वाले क्षेत्र ग्वालियर- चंबल संभाग है। चंबल क्षेत्र में बागी दस्याओं की परंपरा में भी गुर्जर आगे रहे हैं।मोहर सिहँ मलखाल सिहँ निर्भय गुर्जर बाबू गुर्जर जैसे कई नाम गिनाए जा सकते हैं। मालवा और निमाड में भी खासी गुर्जर आबादी है।देष के प्रमुख गुर्जर राजनीतिक नेताओं में हरियाणा के अवतार सिहँ भडाना, उत्तर प्रदेष के समाजवादी नेता रामषरण दास एवं युवा सांसद चैधरी मुनव्वर हसन राजस्थान के सांसद सचिन पायलट,गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल, मध्य प्रदेष के गुर्जर नेता हुकुम सिहँ कराडा,ताराचंद पटेल,दिल्ली केएनसीपी नेता रामवीर सिह विधूडी एवं चैधरी षीषपाल सिहँ विधूडी,महाराश्ट्र के अन्ना के विखे पाटिल आदि हैं। जम्मू-कष्मीर में चैधरी असलम साद,बसीर अहमद एवं षेख अब्दुला की पत्नी बेगम अकबर जहान खुद गुर्जर थीं और राजनीति में बेहद सक्रिय रहीं। उन्हे कष्मार में ‘मादरे मेहरबां के नाम से भी जाना जाता है। कांग्रेस में इंदिरा गांधी ने 70के दषक में गुर्जरो की ताकत पहचानी।उन्होने 1980 के लोकसभा चुनावों में राजेष पायलट को राजस्थान के गुर्जर-जाट बहुल भरतपुर से संसद में भेजकर उन्हें देष की गुर्जर राजनीति की धुरी बना दिया।
पिछडा वर्ग में षामिल होने के बावजूद षिक्षा,प्रषासन और पुंजी जगत में गुर्जरों की हिस्सेदारी नगण्य हैं। मंडल आयोग की सिफारिषें लागू होने के 15 साल बाद सिर्फ तीन गुर्जर भारतीय प्रषासनिक सेवा में आए हैं। जबकि आईपीएस सिर्फ पाँच हैं जो मंडल से पहले बने थे। बैंसला की बेटी गुर्जरों में पहली प्रथम श्रेणी महिला अधिकारी हैं।जो आयकर विभाग में तैनात हैं।सेना में गुर्जरो की भागीदरी ठीक-ठाक है।संपन्न गुर्जरो की श्रेणियों में पहली उनकी है जिनके पूर्वज पूर्व रियासतों से संबद्ध रहे चाहे उदय सिहँकी धायमां पन्ना धाय के समान धायों की संतति के रुप में धाभाई उपाधि धारण करने वाले हों या पुर्व रियासतो के फौजियो और कर्मचारियों के वषंज हों। इनके बाद वे हैं जो अंग्रेजों द्धारा गुर्जरों को जरायम पेषा कौम की सूची में डाले जाने के बाद गैरकानूनी जरीकों से पैसा कमाकर संपन्न हुए। फिर वे गुर्जर हैं जिन्होने दूध-मावा व्यवसाय से खुद को समृद्ध किया। नए संपन्न श्रेणियों की आबादी 20 फीसदी ही है।षेश गुर्जर गरीबी की रेखा के आसपास हैं।वैसे पाकिस्तान में गुर्जरों की हालत अच्छी है। पाकिस्तान में पूर्व राश्ट्रपति फजल इलाही और तेज गेंदबाज शोएब अख्तर जैसी गुर्जर षख्सियतें शिखर पर रहीं है।